उषा और अनिरुद्ध की एक अनोखी प्रेम कथा।

उषा और अनिरुद्ध एक अनोखी प्रेम कथा


Unique love story of Usha and Anirudh.




Unique love story of Usha and Anirudh.
Unique love story of Usha and Anirudh.




प्रिय पाठकों 
पौराणिक प्रेम कथाएं भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और वे हमारी संस्कृति, नैतिकता और राष्ट्रीय धार्मिक भावनाओं को प्रतिष्ठित करती हैं। इन पौराणिक प्रेम कथाओं का इतिहास बहुत पुराना है और इन्हें लोग पीढ़ी से पीढ़ी तक आदि रचनाओं और मौन्तिन स्टोरीज के रूप में पढ़ते आए हैं। इन कथाओं में प्रेम के विभिन्न पहलुओं, रोमांचक घटनाओं, नायिकाओं और नायकों के चरित्र विकास के माध्यम से विभिन्न संदेश और सिद्धांतों की प्रस्तुति की गई है।
जिसमें से कुछ प्रसिद्ध पौराणिक प्रेम कथाएं  आप यहां से "पौराणिक कथाओं का महा संग्रह" पढ़ सकते हैं। इनमे सभी प्रमुख पौराणिक प्रेम कथाओं का उल्लेख किया गया है। इसके अलावा भी बहुत सारी प्रेम कथाएं हैं जो भारतीय पौराणिक साहित्य में प्रसिद्ध हैं। ये कथाएं विभिन्न पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों में प्राप्त होती हैं और अलग-अलग प्रेम कहानियों को आधार बनाती हैं।


उषा और अनिरुद्ध एक अनोखी प्रेम कथा
Unique love story of Usha and Anirudh.


उषा’ जो की बाणासुर नमक असुर की कन्या थी और ‘अनिरुद्ध’ (भगवान श्री कृष्ण के पौत्र)। बाणासुर की कन्या उषा अति सुंदर और यौवन से भरपूर थी। अनिरुद्ध का तेज भी कामदेव की सुधरता को फीका करने के लिए काफी था। बाणासुर पुत्री उषा ने अनिरुद्ध की सुंदरता बाल और शौर्य की काफी प्रशंसा सुनी थी, लेकिन अभी तल अनिरुद्ध को देखा नहीं था। एक दिनकी बात है उषा अपनी सहेलियों के साथ आराम करते करते गहरी नींद में सो गई। तभी सपने में एक अति सुन्दर राजकुमार को देखा और वो सपने में उस पर मोहित हो गई। और मन ही मन राजकुमार से प्रेम करने लगी। 


उषा सपने में ही उस राजकुमार से बातें करते हुए बोली- आप मुझे छोड़कर मत जाइए कुमार- मत जाइए- मैं आपके बहुत प्रेम करती हूँ, मैं आपके बिना नहीं रह सकती हूँ। "मत जाइए कुमार- मत जाइए।” राजकुमारी उषा के कांपते हुए होठों से निकला और फिर वह एक झटके के साथ उठकर बिस्तर पर बैठ गई। राजकुमारी उषा नींद में बड़बड़ा रही थी। 

जिसे सुनकर पलंग के आस-पास नींद में सोई हुई उनकी सभी दासियाँ उठकर खड़ी हो गई। राजकुमारी उषा ने अपनी आँखें खोलकर चारो तरफ देखा। उस विशाल शयनकक्ष में राजकुमारी उषा और उनके दासियों के सिवा और कोई भी नहीं था। “कहाँ गए वे? 


राजकुमारी उषा ने गहरी नींद में सपने में डूबी हुई आवाज़ में कहा। तभी फटाफट सभी दासियों ने उषा के पास आकर पूछा- “कौन कहां गए राजकुमारी”? फिर दासियों ने कहा राजकुमारी यहां पर तो हमारे और आपके अलावा कोई भी नहीं है। 


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राजकुमारी उषा ने कहा “नहीं, वे तो अभी-अभी यही पर थे- मेरे साथ ही मेरे पलंग पर थे- ये देखो दासी उनके देह की गंध अभी भी मेरे तन-मन में और मेरी हर सांस और अंग अंग में समाई हुई है,” ये देखो राजकुमारी उषा ने अपनी दासी को बताते हुए अपनी बाँहों को सूंघते हुए कहा, नहीं नही वे मुझे ऐसे छोड़कर कहीं कभी नहीं जा सकते। उन्होंने मुझे सपने में ही सही पर वचन दिया है।


तुम सब मिलकर उन्हें ढूंढ़ों, वे यही कहीं होंगे। 
दसियों ने कहा- “लगता है आपने कोई भयानक स्वप्न देखा है, राजकुमारी!”तभी वहा उपस्थित सभी दासियों में एक राजकुमारी की सहेली जैसी मुँह बोली दासी भी थी। उसने राजकुमारी उषा को हंसते हुए कहा, की राजकुमारी आप मुझे बताइए वो कोन थे, जिन्होंने सपने में हमारी राजकुमारी के साथ सोने और प्यार करने का दुसाहस किया है।


उसे अवश्य सजा मिलेगी। तभी राजकुमारी कुछ सोचकर बोली हाँ- शायद मैंने सपना ही देखा था”। राजकुमारी उषा एक लम्बी साँस लेते हुए बोली – “लेकिन वह केवल सपना ही नहीं था, उसमें वास्तविकता थी। उनके आलिंगन को मैं अभी भी महसूस कर रही हूँ, जिससे मुझे मीठा मीठा और हल्का हल्का सा दर्द भी हो रही है। मेरा तन-मन और पूरा शरीर सिहर रहा है”। 


दासी मजाक करते हुए बोली, सपने में ही सही, मेरी राजकुमारी जी का मन का मीत मिल गया। हमें तो बहुत खुशी हो रही है। हम सब अभी जाकर राजमाता को यह शुभ समाचार सुना देते है, जो आपके योग्य वर की तलाश वर्षों से कर रही हैं। वह योग्य वर राजकुमारी जी को सपने में मिल गया है।


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राजकुमारी उषा ने कहा- “नहीं चंदा, अभी तुम राजमाता को इसके बारे में कुछ भी मत बताना। राजकुमारी ने अपनी सहेली चंदा को रोकते हुए कहा, चंदा तुम सुबह होते ही हमारे महामंत्री कुम्मांड के घर को चली जाना और उनकी पुत्री और मेरी सखा चित्रलेखा को बुला कर लाना। वो मेरी प्रिय सहेली होने के साथ-साथ योग विधा में बहुत ही पारंगत और महान चित्रकार भी है। वो किसी भी इंसान को देखे उसका केवल मात्र हुलिया बता देने से उसका हुबहू चित्र बना देती है।


चित्रलेखा अपनी योग शक्ति से उस व्यक्ति का उम्र और नाम भी बता सकती है। दासी ने कहा ठीक है, राजकुमारी जी मैं सुबह होते ही चित्रलेखा को बुलाकर ले आउंगी। दासी ने राजकुमारी से कहा अब आप आराम से सो जाइए अभी एक पहर की रात बाकी है। यह कहते हुए दासी ने राजकुमारी उषा को पकड़कर उन्हें उनके बिस्तर पर लिटा दिया।


सुबह होते ही दासी चित्रलेखा को बुलाकर ले आई। चित्रलेखा अपनी सहेली से पूछी क्या बात हुई राजकुमारी उषा सुबह-सुबह क्यों बुलवाया है। क्या बात है? राजकुमारी उषा ने रात के सपने के विषय में चित्रलेखा को सारी बातें बताई। चित्रलेखा ने कहा ठीक है तुमने जिस युवक को सपने में देखा है और उसके साथ प्रेम किया था, उसका पूरा हुलिया बताओं। राजकुमारी ने चित्रलेखा को उस युवक का हुलिया बता दिया। उसका हुलिया जानने के बाद चित्रलेखा ने चित्र बनाया। 


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चित्र को देखते ही राजकुमारी उषा तुरंत बोली हाँ, सखी यह वही है। हुबहू वैसा ही नाक-नक्श, वही रूप-रंग, वही वेशभूषा, उषा ने चित्र को अच्छी तरह देखते हुए बोला, चित्रलेखा! लेकिन यह है कौन? यह कहाँ और किस देश का राजा या राजकुमार है। चित्रलेखा बोली इसके नाक-नक्श, रूप-रंग और वेश- भूषा सभी यादवों से मिलती-जुलती है। मेरे अनुमान से यह कोई यादव वंश का होना चाहिए। हो सकता है यह श्री कृष्ण के वंश का हो, “चित्रलेखा ने कहा तुम चिंता मत करो। आज मैं अपनी योग शक्ति से द्वारिका जाउंगी और तुम्हारे इस प्रियतम को खोजने की कोशिश करुँगी”।


चित्रलेखा की बात को सुनकर राजकुमारी उषा उदास हो गई। राजकुमारी जानती थी कि उसके पिता दानवराज बाणासुर द्वारिकाधीश को अपना कट्टरशत्रु मानते हैं, क्योंकि उनकी मित्रता कृष्ण के शत्रु जरासंघ और शिशुपाल से है। हालांकि श्री कृष्ण ने कभी कोई हमारा अहित नहीं किया, लेकिन मित्र का शत्रु हमारा भी शत्रु ही होगा। 


इस सिद्धांत के अनुसार वे भी श्री कृष्ण को अपना शत्रु ही मानते है। यदि सपने का राजकुमार कृष्ण का वंशज हुआ तो उसके साथ विवाह होने का प्रश्न ही नहीं उठता है। राजकुमारी उषा की सहेली चित्रलेखा भी इस बात को भली-भांति जानती थी। इसलिए उसने उषा को समझाया कि वह अपने सपने के राजकुमार को भूल जाए लेकिन उषा ने भी ज़िद कर ली थी, कि कुछ भी हो जाए शादी तो वे अपने सपने में आने वाले राजकुमार से ही करेगी। 


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फिर योग की शक्ति से चित्रलेखा उसी रात द्वारिका गई। उसने द्वारिका के सभी भवनों में जाकर देखा। अचानक श्री कृष्ण के राजमहल में उसकी नजर श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध पर पड़ी। अनिरुद्ध अपने शयनकक्ष में गहरी नींद से सो रहे थे। चित्रलेखा ने अपनी योग विद्या से राजकुमार अनिरुद्ध को निंद्रा अवस्था में ही उसको पलंग सहित उठा लिया और आकाश मार्ग से होते हुए राजकुमारी उषा के शयनकक्ष में लाकर उतार दिया। 


राजकुमारी उषा अनिरुद्ध को देखते ही पहचान गई। राजकुमारी ने अनिरुद्ध को जगाया। अनिरुद्ध की जब ऑंखें खुली तब उसने अपने निकट राजकुमारी उषा को देखकर आश्चर्य चकित हो गया। राजकुमारी उषा ने अनिरुद्ध को अपनी सारी कहानी सुना दी। राजकुमारी उषा ने अनिरुद्ध से कहा अब तो मैं आपके बिना पल भर भी जीवित नहीं रह सकती। सपने में ही सही पर हम दोनों ने प्रेम किया है। और दूसरी तरफ राजकुमारी उषा के रूप, सौंदर्य और यौवन ने अनिरुद्ध के हृदय में भी उषा के प्रति आकर्षण पैदा कर दिया। 


उसके बाद दोनो ने राजमहल में ही गंधर्व विवाह कर लिया और दोनो पति-पत्नी की तरह रहने लगते हैं। वे दोनों हमेशा एक दूसरे में इतने खोए हुए रहते थे कि उन्हें यह भी पता नहीं चला कि उन्हें पति-पत्नी के रूप में एक साथ रहते हुए कितने दिन बीत चुके हैं। 


पति-पत्नी के रूप में हमेशा साथ-साथ रहने के कारण राजकुमारी उषा का कौमार्य पण भंग हो चुका था। राजकुमारी के भवन में पुरुषों का आना वर्जित था। भवन के चारों तरफ सैनिक हर समय तैनात रहते थे। राजकुमारी के स्वभाव अचानक में आया परिवर्तन सैनिकों से छिपा रहा। सैनिकों को इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि राजकुमारी के भवन में आज तक कोई भी पुरुष गया फिर राजकुमारी में यह सब परिवर्तन क्यों हो रहा है?


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सैनिकों ने अपनी यह शंका जब दानवराज बाणासुर को बताया तब बाणासुर को बहुत दुःख हुआ और क्रोध भी आया। यह सुनते ही वह अपनी पुत्री के भवन में पहुँचा। बाणासुर ने देखा कि उसकी पुत्री एक सुन्दर नवयुवक के साथ पाशे खेल रही है। यह देखकर बाणासुर अत्यधिक क्रोधित हुआ और उसने सैनिकों को आदेश दे दिया कि इस युवक को खत्म कर दिया जाए। इस युवक ने बाणासुर के वंश और सम्मान को कलंकित करने का दुसाहस किया है। 


अनिरुद्ध अपने आपको सैनिकों के बीच घिरा देखकर शस्त्र उठा लिया और बाणासुर के सैनिकों का संहार करना शुरू कर दिया। बाणासुर के सैनिक अकेले अनिरुद्ध को नहीं हरा सके। अपने सैनिकों का महा संहार होते देखकर बाणासुर घबरा गया और उसने नागपाश अस्त्र सा संधान कर के अनिरुद्ध को बांध कर अपने कारागार में डाल दिया।


अपने शयन कक्ष में सोये हुए अनिरुद्ध को गायब हुए चार महीने बीत चुका था। द्वारिका के निवासी इस घटना से अत्यंत दुखी और चिंतित थे। अनिरुद्ध को खोजने में उनलोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन अनिरुद्ध का कही भी पता नहीं चल रहा था। अचानक एक दिन नारद जी द्वारिका आए। नारद जी ने भगवान श्री कृष्ण को बाणासुर के राज्य शोणितपुर में राजकुमार अनिरुद्ध और राजकुमारी उषा के साथ हुए प्रेम प्रसंग और बाणासुर के साथ युद्ध में बाणासुर द्वारा अनिरुद्ध को नागपाश में बांध कर कारागार में डाले जाने की सारी घटनाएँ भगवान श्री कृष्ण को विस्तार पूर्वक सुनाई।


बाणासुर भी शिव जी का बड़ा भक्त था। उसकी एक हजार भुजाएँ थी। बाणासुर ने अपनी एक हजार भुजाओं से शिवजी की अराधना करके शिव जी को भी वरदान देने के लिए विवश कर दिया था। उसने शिवजी से वर माँगा था कि वह अपने गणों के साथ राजधानी शोणितपुर में हर समय रहेंगें और शत्रु के द्वारा आक्रमण किए जाने पर हमेशा उसकी रक्षा करेंगे। बाणासुर को अपनी शक्ति और शिवजी द्वारा दिए गए हमेशा रक्षा करने के वरदान पर बहुत घमंड हो गया था।


एक बार बाणासुर ने भगवान शिवजी से बोला- मेरी हजार भुजाएँ है। ये सभी भुजाएँ युद्ध करने के लिए बेचैन हो रही हैं। मुझे कोई भी ऐसा योद्धा इस संसार में दिखाई नहीं देता जिसके साथ मैं युद्ध कर सकूँ। भगवान शिवजी को बाणासुर के इस घमंड से बहुत गुस्सा आया। भगवान शिवजी ने उसे एक ध्वज देते हुए कहा ” हे बाणासुर तुम मेरे इस ‘ध्वज’ को अपने नगर के "प्रवेश" सिंह द्वार पर लगा देना। और स्मरण रहे जिस दिन यह ध्वज कुदरती रूप से अपने आप गिर जाएगा उस दिन तुम समझ लेना कि तुम्हारे जैसा महाबली और शक्तिशाली योद्धा तुम्हारे राज्य पर आक्रमण करने आ गया है।


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जब नारद जी ने भगवान श्री कृष्ण को यह चूसना दी कि राजकुमार अनिरुद्ध बाणासुर की राजधानी शोणित पुर के कारागार में बंदी है तब श्री कृष्ण की विशाल यादव सेना ने शोणितपुर पर आक्रमण कर दिया। यादवों के आक्रमण करते ही शोणित पुर नगर के सिंह द्वार पर लगा शिवजी का ध्वज अपने आप उखड़कर जमीन पर गिर गया। ध्वज के गिरते ही बाणासुर के समझते देर न लगी कि उसके जैसे किसी पराक्रमी योद्धा ने उस पर आक्रमण कर दिया है। बाणासुर को दिए गए वरदान के अनुसार भगवान शिवजी अपने गणों के साथ श्री कृष्ण से युद्ध करने के लिए तैयार थे। बाणासुर भी अपनी विशाल सेना लेकर युद्ध के लिए तैयार हो गया। दोनों में भीषण युद्ध शुरू हो गया। 


युद्ध में श्री कृष्ण ने अपने बाण से बाणासुर की दो भुजाएँ छोड़कर शेष सभी भुजाओं को काट दि। इस महा भीषण युद्ध संग्राम से शिव जी के सभी गण और बाणासुर के सभी सैनिक युद्ध भूमि छोड़कर भागने लगे। यह देखकर भगवान शिवजी स्वयं ही श्री कृष्ण के साथ युद्ध करने की घोषणा कर दिए। बाणासुर को समझ में आ गया कि श्री कृष्ण वास्तव में परमेश्वर हैं। 

यह जानकर बाणासुर श्रीकृष्ण के शरण में आकार क्षमा मांगने लगा। श्री कृष्ण ने बाणासुर को क्षमा कर दिया। फिर राजकुमार अनिरुद्ध और राजकुमारी उषा का विवाह करवाने का आदेश दिया। विवाह के बाद भगवान श्री कृष्ण अपने पोते और उषा बहु को लेकर अपनी नगरी द्वारिका चले गए। इस प्रकार उषा और अनिरुद्ध की प्रेम कहानी को सफलता मिली।


भारतीय साहित्य में यह एक अनोखी प्रेम कथा है, जिसमे प्रेमिका अपने प्रेमी का हरण कर लेती है। प्रधुम्न के पुत्र तथा श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध की पत्नी के रूप में राजकुमारी उषा को ख्याति प्राप्त हुई।


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